मै उत्तराखंड का उपनल कर्मी

मै उत्तराखंड का उपनल कर्मी !! (एक याद 'अजन्त' के पानी के नाम)
'अजन्त', मेरे बचपन का सबसे एक सबसे प्यारा दोस्त गांव घर में पानी ठीक करते करते कब उपनल कर्मी बन गया पता नहीं चला. गावो में सरकार द्वारा प्रदत पानी को शायद (इल स डी) का पानी कहा जाता था पर मेरे लिए वह सरकारी पानी 'अजन्त' का पानी ही था.... जो टाइम से आता था और टाइम से जाता था. गावो के अन्य नलों को तुलना ये अजन्त का पानी बहुत तेजी से आता था और तेजी तथा किसी पावर की मिलावट की वजह से सफ़ेद सा होता था. उन दिनों गांव में पानी के अपने निजी कई नल थे और साथ मै गांव के प्राचीन पानी के स्रोत (धारे और बोडियां) भी पानी से लबालब रहते थे. इसलिए तब इस अजन्त के पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती थी पर फिर भी जब भी गांव में पानी की थोड़ी सी भी कमी हुई तो 'अजन्त' के पानी की सबको जरूरत होती थी.
बचपन से लेकर स्कूल के दिनों के बाद से उच्य शिक्षा तथा रोजगार के लिए देश से विदेशो की यात्रा की और एक तरह से पहाड़ो और देश से पलायन कर १२-१५ सालो से विदेश ही घर बन गया. फिर भी हर साल जब भी घर जाना हुआ वह अजन्त का पानी हमेशा घर पर आता रहा और अजन्त की याद दिलाता रहा, घर दो मंजिला- तीन मंजिला हुआ और घर पर पानी की टंकी चढ़ गयी हालांकि गावो के निजी जल के स्रोत और प्राचीन स्रोत सूखते चले गए. धीरे धीरे अब 'अजन्त' का पानी ही गांव घर में एक आसरा है. दो दिन को अगर घर गांव में पानी न आये तो लोग अजन्त को गली देने लग जाते है.
एक बार यही गर्मियों की छुटियो में घर जाना हुआ तो सोचा अजन्त से मिल लूं और ये भी पूछू की आजकल पानी तेजी से क्यों नहीं आ रहा है क्योकि घर के ऊपर रखि टंकी तक अजन्त का पानी नहीं पहुँच रहा था. अजन्त से मुलाकात की तो उसने बताया कि 'अजन्त' के पानी के नल मै शायद कबाड़ भर गया है इसीलिए कम पानी आ रहा है और इसीलिए कल सुबह ४ बजे उठकर वह पानी लगाने जायेगा. तो सोचा एक बार अजन्त का पानी देख ही आवु.
ठीक चार बजे सुबह अजन्त का फ़ोन आया कहा है? में कुम्भकर्णी नींद से जागा और अजन्त के साथ हो लिया. पता चला कि दो बच्चो का पिता अजन्त दोनों के लिए रोटी बाँधकर लाया था... शायद भाभी जी के हाथ का यही पहली और आखिरी बार खाया था...
मैंने भी कई किलोमीटर कि ट्रैकिंग कि है और कुछ नहीं तो केदारनाथ की १४ किमी की दूरी तो तय की ही है पर जितना उसदिन अजन्त के साथ चला सायद फिर कभी नहीं चला.. उसी चलने मै कुछ बात जीवन से जुडी भी हुई तो पता चला कि अब सबकी गली खाने वाला अजन्त के पानी वाला अजन्त को बहुत कम ध्याड़ी मिलती है और मेरे लिए उतने पैसे मै गांव घर मै गुजारा करना नामुमकिन है. फिर भी अजन्त हमेशा खुश ही दिखा.
आज घर छोडे करीब २५ साल हो गए हर साल घर जाता हूँ हर साल हर बार अजन्त का पानी आता है .... पर मेरे बचपन का दोस्त ये उपनल कर्मी आज भी सबसे कम पैसो पर ही अपना घर चलता है ...
वो कभी स्थायी उपनल कर्मी बनेगा या नहीं ये तो नहीं पता पर गांव घर की आश सभी की आश उसी अजन्त के पानी पर है .... शायद यही सरकारी पानी है ....

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