सजता कब है

शाम कभी उन राहों पर
नज़र तांकती रहती थी 
हवा कभी उन राहों  की
छूकर चुपके बह जाती थी 

झुरमुट के कोने पर कोई
चाँद निकलता रहता था 
सरपट दौड़ लगाती आशा
कोई मन अधीर रह जाता था 

शाम सुहानी बंजर होती
धरती आस जगाती कब है
मन मन्दिर का कोई कोना 
श्याम रंग से सजता कब हैं 


Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण