अपनापन

वो जो तु बस निभाने को
बाँट लेता है सूनापन 
तेरी मेरी सीमाओं का 
बस वो ही है अपनापन 

आशायें कहाँ हज़ार थी 
जता देता हूँ अवारापन
इन अधूरी कहनियों का
ये ही है वो अपनापन 

दूरियाँ का ये लगाव था 
खिंचता रहा वो भोलापन
सबके बीच की खींचतान का
ये ही है वो अपनापन 

हर वक़्त मन में शामिल रहा
वो जो है अपना ख्यालीपन 
वो जो जगज़ाहिर न हुए 
ये ही है वो अपनापन 



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