विसर्जन
मन संगम की गंगा को
घर में सजाना चाहता है
संग रहे जल शीतल निर्झर
मन आधात का विसर्जन चाहता है।
घर में सजाना चाहता है
संग रहे जल शीतल निर्झर
मन आधात का विसर्जन चाहता है।
मिट्टी राख लगाए तन पर
तुझमें खोना चाहता है
संग रहे लिपटे हो भुजंग
मन आधात का विसर्जन चाहता है।
बाँध के झोला सरहद पारे
यायावर बनना चाहता है
संग रहे न बोझिल सांसे
मन आधात का विसर्जन चाहता है।
दे के सांसे जीवन तेरे
नाम ये तेरे करना चाहता है
संग रहे स्नेह की बातें
मन आधात का विसर्जन चाहता है।
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