वो कुरेदा नाम

सपनों को लिखता हूँ 
यादों को बुनता हूँ 
लम्बा तेरे बाद का शीतकाल
यादों को ओढ़कर सोना चाहता हूँ 
 
उगाये गये उन पेड़ों पर 
फिर वो नाम कुरेदता हूँ 
शिलान्यास तेरे अवशेष बन जायेंगे 
वो दर्द ज़िन्दा रखना चाहता हूँ 

छिटके गये उन बीजों पर 
फिर कोई भारी पत्थर रखता हूँ 
रिश्ते सब भुला भी दिये जाय तो क्या
वो अपनापन ज़िन्दा रखना चाहता हूँ 

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