खामोश है

बदलते हर पन्ने पर
चेहरे वो अंजान हैं
किताबों के ढेर मे
एक कहानी गुमनाम है 

मेंढों की क़तारों पर
उगी कुछ घास है 
अनाजों के ढेर में
बीज कहीं दबा सा है  

पथरीलें रास्तों पर
ज़मीं कुछ शैवाल है 
बरसात के शोर मे
गाँव अब खामोश है 

तेरी ढीठ आदतों पर
मेरी वो बदमाशीयां है 
जानता तु भी है मैं भी 
बस मन है कि खामोश है 

 
 

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