इलेवन बोफोर्स और लमगौंडी क्षेत्र की क्रिकेट खेल यात्रा

 

इलेवन बोफोर्स और लमगौंडी क्षेत्र की क्रिकेट खेल यात्रा
यूँ तो लमगौड़ी क्षेत्र अपने सांस्कृतिक कार्यकर्मो की बजह से हमेशा से जाना जाता रहा है चाहे वो रामलीला मंचन हो या अन्य सांस्कृतिक आयोजन पर आज अनायास खेलो की उन दिनों की याद आयी जब सुना कि लमगौंडी की इलेवन बोफोर्स टीम ने दिवाली भणिग्राम में क्रिकेट प्रतियोगिता जीत ली। सांस्कृतिक आयोजनों के समय से वॉलीबाल जैसे कुछ खेलों का आयोजन क्षेत्र में काफी पहले से होता रहता था पर क्रिकेट की शुरुवात का मैं शायद एक गवाह हूँ । क्षेत्र में क्रिकेट की शुरुआत करने का श्रेय मैं पुष्पेंद्र शुक्ल मामा जी और ईश्वरचंद अवस्थी भाई साब को देना चाहूँगा और फिर दिवाली भणिग्राम में गणेश तिवारी जी और स्व देवी तिवारी जी को देना चाहूँगा। क्रिकेट के कुछ शुरुवाती सालो के बाद राजीव पोस्ती भाई साब और प्रभात शुक्ल भाई साब के दिमाग की ये उपज था ये नाम "इलेवन बोफोर्स" जो टीम सालो बाद आज भी क्षेत्र की अपनी टीम लगती है। यहीं थी " मिटटी के शेरों" की टीम। ये नाम नाला में चाय की दुकान चलाते एक बोड़ा जी तब इस टीम को कहते थे क्योकि लगातार तीन सालो तक यहीं टीम वहाँ जीतती रही । वह सब खिलाडी मिटटी ले लेटकर , गिरकर भी मैच जीता ही जाते थे तभी वो असली शेर थे, खेल के खेतों की मिटटी के शेर । आज साधन हैं , खेल की ज्यादा समझ है पर जज्बा वहीं था । कृष्णा जुगरान भाई और नितिन की ओपनिंग जोड़ी को आउट करना ही मुश्किल था , कृष्णा का हर बॉल का डिफेंसिव और नितिन का पहली बॉल से तेज खेलना सबको भाता था। आज कितना भी कोई लम्बा रन -उप लेले पर कोसों भाई ( अरुण बाजपाई) जैसा रन-उप किसी का न होगा । फील्ड के अनुसार दोनों साइड बराबर योग्यता से अनुज बाजपाई जैसा कोई नहीं खेल सकता ।अरुण , अनुज और हरीश नेगी जैसी तिगड़ी वाली सटीक बोलिंग और अनिल (चुइया) जैसी बोलिंग को शायद ही अब कोई कर पाए । कौन भूल सकता है लमगौंडी में हरीश नेगी की डबल हैट्रिक को । भास्कर पोस्ती, कृष्णा भाई और गुल्ली भयोना ( वीरेंदर पोस्ती ) जैसी विकेट कीपिंग शायद ही कोई कर पाए। लॉन्ग ऑन और बॉलर के सर के ऊपर से भास्कर पोस्ती भाई , कपूर सजवाण भाई और शुशील त्रिवेदी जैसे छक्का शायद ही कोई लगा पाए । टीम के लिए बाएं हाथ से खेलते हुए आनंद सजवाण भाई, प्रकाश अवस्थी भाई और अमरनाथ शुक्ल भाई जैसे आल राउंडर शायद ही कोई हो और बलराम भाई, गुमलया भाई ( रामेश्वर सेमवाल) थर्ड मैन पर फील्डिंग करने वाला शायद ही कोई फील्डर हो । ऐसा लगता था एक एक हीरे को चुनकर ये टीम बनी है जो पहली इलेवन बोफोर्स थी। राजीव भाई ने ये नाम भी शायद इसीलिए दिया होगा क्योकि तब भारत ने ये टॉप खरीदी थी।

एक खेल प्रसंशक होने के नाते आज तक रूपनारायण और दीपनारायण मामा , ज्ञानेंद्र बाजपाई भाई और विद्यासागर भाई के ऊँचे छक्के और भरोसी मामा की तीन अँगुलियों वाली स्पिन बोलिंग याद आती है । पहली बार क्रिकेट के ड्रेस में पुष्पेंद्र मामा और सिंगोली वाले देवी त्रिवेदी भाई साब को खेलते देखना ही अजूबा था । क्षेत्र में किमाणा से आयी त्रिवेदी भाइयों की टीम, खाट के अर्जुन काका, रामपुर के विक्रम भाई और नाला के कुंवर भाई तथा सोबतो भाई तब विदेशी खिलाडी लगते थे। उन्ही दिनों अपने अरविन्द चमोला सर की तेज गेंदबाजी का कोई जबाब नहीं था ।
आज अजय भुला और राज बेटे की कमेंट्री सबको पसंद है पर प्रेम प्रकाश तिवारी भाई , विद्यासागर भाई और भणिग्राम वाले स्व आनंद बगवाड़ी भाई की कॉमेंट्री का अपना ही मजा था और उनसे संस्कृत में कॉमेट्री करते स्व कैलाश पोस्ती जी की बात ही निराली थी । कौन भूल पाएंगे फलान के स्व शंकरु तिनसोला और बामसू के स्व ओंकार जी जैसे एलेवेन बोफोर्स के समर्थको को।
दिवाली के तीन भाई स्व देवी भाई , पुशू भाई और शिव भाई , ल्वाणी के छोटेलाल और सुरेंद्र भाई को खेलते देखना आज भी याद आता है
बाद के बरसो में सुबोध बगवाड़ी, स्व राकेश पोस्ती ( मार्शल) , सुकमाल सजवाण , सिंगोली का भरोसी जैसे तेज बॉलर, गोपाल शुक्ल , आनद बगवाड़ी और प्रमोद सेमवाल जैसा आल राउंडर आज भी शायद मुश्किल ही होगा। क्रिकेट का नायब इतिहास समाये "इलेवन बोफोर्स" अगर किसी बड़े नगर की टीम होती तो आजतक कब का एक रजिस्टर्ड क्लब होता जिसके सदस्य अपने नए पुराने सब खिलाडी होते और शायद कई खिलाडी कुछ बड़ा कर जाते ।
हाँ , ये सुकून जरूर देता है कि आज भी हर जगह "इलेवन बोफोर्स " अच्छा ही खेलती है , आज भी उसके खिलाडी कुछ अलग से लगते हैं । बरसों से "इलेवन बोफोर्स " की टीम में खेलने वाले और साथ में क्षेत्र के क्रिकेट में को शुरू करने और आजतक सजोये रखने वाले सभी लोगों का धन्यवाद और गर्व की हमने भी कभी वो केदारघाटी के पहाड़ों का जीवन जीया है।

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