चल जाना

 

कहकर शब्द लिए वापस जो 

वो गीत कभी दोहरा जाना 

उन  राहों में खाली चलना 

वो शाम कभी दोहरा जाना 


खुली किताबो के पन्नों पर  

वो कहानी पूरी पढ़ जाना 

मन्नत के धागों से  बाँधी

आस समर्पित कर जाना 


खुले झरोखों पर टकती वो 

नजर बहाकर ले जाना 

सन्नाटे में खुद से कहती 

आवाज़ कही दुहरा जाना 


लिखकर शब्द मिटाये हैं जो 

तुम बतलाकर कह जाना 

रिश्तों के धागों की गेहड़ी

खोल बोल कर चल जाना 

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