बिखरा हूँ हरपल

 

बह जाना बह जाना संग औ रे सागरिया

नदिया किनारे पे झूले डाली  अमियाँ

छूकर हवा का झौंका कोई निकले 

धूलि कणों सा मैं बिखरा हूँ हरपल


बढ़ जाना बढ़ जाना वो टेढ़ी डगरिया 

सूरज दिखेगा जो माथे हो पसीना 

बैठ जाना नीम छाँव घड़ी भर बटोहिया 

मीठी लगेगी वो धुप निरहुआ


थम जाना थम जाना दो पल पपीहरा 

बरखा की बूंदों में छिपी है पिपासा 

भीच लेना मुठी तू भी कोमल कदमदल

हस्ती है छोटी मैं सिमटा हूँ हरपल   




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