डरता कौन है

मंचानों से उड़ना कठिन तो न था
पर पंखों को खुद ही तोड़ा है 
बिखरने से यूँ तो डरता कौन है 

सामना मुश्किलों से उतना भी न था 
पर बाँधों को खुद ही खोला है 
बहने से यूँ तो डरता कौन है 

दर्द भागती यादों का नासाज़ तो न था 
मन खुद ही उसे परदेश छोड आया है
अकेलेपन से यूँ तो डरता कौन है 

ज़िक्र अपनों का महफ़िलों मे छुपा तो न था
पर मन को खुद ही एकाकी बनाया है 
परायों में तेरी बातों से डरता कौन है 


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