तस्वीर

नदी सा चुपचाप बहता रहा 
कभी समुद्र सा शान्त दिखा
उमड़ते गरजते बादलों में
आशाओं का पहाड ढका रहा 

सबकुछ तो वोही है 
कोने मे किसकी कमी है
चहकती बसन्ती सुबह में
ये कौन अलसायी बेल है 

दीवारों के चित्रों पर धूल है
साफ तस्वीर वो किसकी है
मन के शान्त किसी कोने में 
वो जमती बर्फ़  किसकी है 

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