तेरे दर

 कब चार दिन माँगे थे 
समय तेरा कुछ माँगा था 
खुद के जीते जीवन को 
तेरे दर पर फैलाया है 

एक दुनिया सिकुड़ती सी 
गहराई जीवन पाता
सिमटती सी आशाएं 
तेरे दर तक जाती हैं 

कब उत्ताप मनों का माँगा 
सानिध्य रहे उस खुशबू के 
एक मद्धम दिखता चंदा 
तेरे दर तक जाती किरणें

एक आशा मन बढ़ती सी 
संग सफर कुछ दूरी 
एक सर रखती सी गोदी 
तेरे दर तक जाती उम्मीदें 

आ हाथ बढ़ा दे भगवन 
चल ले चल नदियां पारे
एक सरपट दौड़ता जीवन 
तेरे दर पर ठहरी नजरें


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