आखिरी

 हम नदिया की धार हैं हमको तो बह जाना है 

बाँध सके तो बाँध भी लेना घटती सरिता धार हैं 

जीवन का हर सार लिए तु गहराहता  वारीश है 

जब हों समर्पित आखिरी सांसे तु अस्तित्व रहे मन का


हम ओझल सी आग हैं हमको तो बुझ जाना है 

जला सके तो जला भी जाना राखों का अंगार हैं 

जीवन का हर मर्म लिए तु अपनाता आकाश है

जब हों प्रवाहित आखिरी आहुति तु अस्तित्व रहे हव का


हम पिघलती  सी बर्फ हैं हमको तो गल जाना है 

समेट सके तो समेट भी लेना फैला नीर अपार है 

जीवन की हर सीख लिए तु चमकता प्रकाश है 

जब हों आँखे बंद आखिरी कफ़न उढ़ाये तु जीवन शव का 

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