लाम पर रहे

बदलता तु भी नही 
बदलता मैं भी नही 
कशिश दोनों तरफ
कहता कोई कुछ नही 

चल कुछ ऐसा करें
की वो जिन्दणी बचे
तु तु रहै मैं मै बनूँ 
अरमानों की एक याद रहें

बुनते सपनों में उलझा 
छन्द तारतम्य में न बदला
जो पास लगे दूर रहे 
मन वाले लाम पर रहे 

शहर की बदनाम गली में
वो था तो ही रौनक़ सी थी 
स्याह सड़कों की शामों पर
खामोश ! उदासी डराती रही 

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