सम्बन्ध है सतिता

तु मेरा एक वो रिश्ता 
जो बन्धन है पतिता का
हजारों बार मैं हारूं
समर में शेष जीवन का

तु मेरा एक वो साया
जो सम्बन्ध है सतिता का
हजारों बार हूँ पत्थर
अमर मैं तेरी ठोकर का

तु मेरा एक वो नाता
जो निभाना है सतता का
हजारों बार मैं उजङु
बहाव तेरे किनारों का

तु मेरी एक वो मंजिल
जो प्रमाण हो मेरे होने का
हो अदृश्य मनन मन का
तु खण्डहर मेरे बजूदों का 

तु मेरा एक वो सपना
जो देखा है जगता का
हों आखें बन्द जब मेरी
तु सपना हो हकिकत का

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