हार कर हम तुम

 हम समय की धार पर चलते हैं बह जाते कहीं 

न मिले हमको समुन्दर हम  बह रहे पर हैं सही 

हर नदी जो बह चली मंजिल सदा पहुँची नहीं 

सभ्यताएं जन्म लेकर खो गयीं उसमे कहीं 


उस नदी की धार हो हम बह चले कुछ दूर तो 

पास बैठे मीत कोई जग में जी लें स्वप्न को 

हर पुल बंधा हो छोर दो कब हुआ जग मै सदा 

जोड़ियां बनकर जुदा होती है जग मै वो यहीं 


हम रहे दो छोर तब भी किदवंतियाँ जग में रहें

हो अमर ये साथ कुछ तो कर ही जाना है अभी 

हम समय की रेत पर कुछ लिख न पाएं गम नहीं 

जो समय हम साथ हों वो जीत जाये हम यहीं 


आ बढ़ा ले हाथ साथी कुछ दूर तू चल तो जरा 

जीत लेंगे ये जमाना हार कर हम तुम यहीं

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