असर

 जिस मोड़ पर खड़ा हूँ मैं 
बेरुख हवाएं प्रीत की 
तु जो होता नाराज़ तो 
बात असर की कम ही थी 

बातों का सूखा रूखापन 
बेदर्द सदायें प्रीत की 
तु जो होता बेतरतीब तो 
बात असर की कम ही थी

सबका गुस्सा मुझ पर जो  
बेमन अदाएं प्रीत की 
तु जो होता अजनबी तो 
बात असर की कम ही थी

स्नेह आंकलन कब है ये 
कब  ये परीक्षा प्रीत की 
तु न होता प्रेम पथिक तो 
बात असर की कम ही थी

पल पल कमता जायेगा जो
जीत न होगी प्रीत की 
तु मन के सबसे पास न होता तो 
बात असर की कम ही थी




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