बिन अहसास

 शायद वो अधूरा मेरे बिना
उसके बिना मैं अधूरा हूँ 
बिन दीपक जो जले है बाती
बिन खुशबू का झोंका  हूँ 

कोरे कागज़ खाली कलमें 
लिखता कभी मिटाता हूँ 
बिन प्रेषक के लिखी है पाती
बिन पत्राचार का साथी हूँ 

डोर कहीं एक छोर बंधी है 
चलता  थमता रुकता हूँ 
बिन पिपासा बढ़ता जाता 
बिन मंजिल का राही हूँ

संग संग कुछ दूर चले हैं 
सपने अनगिनत सजता हूँ 
बिन संगम के बही है नदिया 
बिन छोर का सागर हूँ 

कब रचता हूँ प्रेम तृषणगी
कब गीत मिलन को गाता हूँ 
बिना नाम कुछ रिश्ते होते 
बिन अहसास का पत्थर हूँ 

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