एक तस्वीर

 इस मन के आईने में जो मुरलीधर ब्रजवाला था 

खोने को ब्रजबाला थी तो पाने को ये जीवन था 

कह कब पाए हैं उतना जितना तस्वीरों ने बोल दिया 

जन्मों से सोचा था जिसको एक तस्वीर ने मिला दिया  



इस मन का जो वहम रहा वो नटखट बंसी वाला था 

खोने को एक बृजभूमि थी पाने को दर्द सुहाना था 

कब लिख पाए जो लिखना था मौन परस्पर बोल गया 

बरसों से जो सोच गयी थी एक तस्वीर ने मिला दिया 


इस मन का जो आराध्य रहा वो रास रचाता कान्हा था 

खोने को सब बाल सखा थे पाने को एक रजकण था 

कब सुन पाए जो सुनना था वो बिन बोले ही बोल गया 

एक रिश्ता जो धूमिल सा था उस तस्वीर ने मिला दिया 

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