साथ निभाता जाऊँगा

 दर्द सहा दूरी का मैंने तु अपनों से दूर न हो जाना 

उनकी खातिर इन दीपों को चाहे तो ठुकरा जाना 

मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा 

वो  देवतुल्य जो  मन में है तु पूजा  ही जायेगा 


दर्द सहा ख़ामोशी का तु अपनों से नाराज़ न हो जाना 

उनकी खातिर चाहे तो ये ढोल ख़ुशी चुप कर जाना 

मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा

तीन शब्द जो मन मै हैं वो समर्पण साथ ही जायेगा  


दर्द सहा तेरे खोने का तु अपनों को मत खो जाना 

उनकी खातिर चाहे तो एक बार शूल फिर दे जाना

मैं हूँ तेरे आस पास मैं साथ निभाता  जाऊँगा

तु कविता बन जिन्दा है ये दर्द साथ ही जायेगा 

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