छोटा सा स्नेह

एक छोटा सा स्नेह सा था
दोनों की नज़रों मे एक सम्मान भी था 
तेरे क़दमों का लड़खड़ाना 
तेरे होंठों का मुस्कुराहट लिये फैल जाना

एक छोटा सा स्नेह ही तो था
तेरा मानना और मेरा तुझे अपना समझना
वो यूँ मिलते ही नज़र झुकाना
और सुबह सुबह क़रीब से गुज़र जाना 

एक छोटा सा स्नेह ही तो था
वो तेरा मिठाई भेजना और मेरा तुझसे पूछना
न जाने क्यों तु छुपा और  मै जता ना पाया
तु मेरे लिये जो सोच गया मै वो कर नहीं पाया

ये छोटा सा स्नेह ही तो था 
 हाँ! तेरे दोस्तों की तादाद के सामने 
जो तुझे घेरे रहे और मुझसे खेलते रहे 
इस स्नेह, तेरे अभिमान और मेरे सम्मान पर
जो बहुत भारी रहा 

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