ख़ामोशी

जिसे सींचा नहीं मैंने, वो कोपल खिल गयी है अब
ये तल्खी चाहकर भी अब, बड़ा दूरी नहीं सकती 
तुझे देखे बिना तकना, तुझे सोचे बिना पाना 
विश्वासों से बड़ी कोई, इबादत हो नहीं सकती ......

जो जीवन मै नहीं माँगा, वो खुद ही पा रहा हूँ मै 
सम्मानों की सरहद अब, बड़ा दूरी नहीं सकती 
तेरा माने बिना होना, तेरा नज़रें झुका जाना 
मनो के तार से बढ़कर कोई इच्छा नहीं होती .......

जो यूँ खामोश रहता है, वो अक्क्सर शोर करता है 
तेरी संजीद नजरे भी ये छुपा अहसास नहीं सकती 
समझना है समझ लेना, ना समझो तो भी चलता है 
इरादों से बड़ी कोई, साजिश हो नहीं सकती ........

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