शामिल हूँ

इस खामोश  और अनिश्चित जीवन मै 
सांसो की उहापोह मै बंधा हैं मन 
जाता हैं कभी आसमान  तक तो कभी जमीं -दौ 
बस शुकुन हैं की दौड़ मै आज भी शामिल हूँ 

उस दिन से निराशा और उदासी ने घेरा हैं मन को 
आशाओं का इंद्रधनुष धुंधला हुआ जाता हैं 
जानता हूँ  दो छोर हैं हम, आसमां और जमीं 
बस यहॉ शुक्र हैं कि जिजीविषा कम नहीं हुई 

आज भी हुनर हैं रेत मै सरपट दौड़ने का 
आज भी बचपन कि अवलता को भूले नहीं 
फिर सब रास्ते तो जाने पहचाने हैं 
तेरे साथ की कमी हो भी, तो भी..... हारूंगा नहीं ........

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