संगम

तेरे अनजान अपनेपन में
सम्वेदनाओं की कमी न थी 
यूँ तो संवाद सीमित रहा 
यूँ तो रिश्तों मे बँधे नही 

अनगिनत उलझनें हों सही
सोच तुझ तक जाती रही 
यूं तो कभी विचार शून्य रहा
यूँ तो कभी वो बूँद गिरी नही 

देखा है कुछ सूखे संगमों को
हम  बहती दो नदीयाँ ही सही
यूं तो कभी अचानक उमड़ती रही 
यूँ कभी चुपचाप शान्त ठहरी रही 

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