सो नहीं पाया

 जीवन चलता तो रहा 
पर ढल नहीं पाया
मंजिल पास थी मगर 
पर चल नहीं पाया 

हर और रही ख़ामोशी जब 
कलम उठाकर लिख डाला 
जब कहना था कुछ तो 
मनन तुम्हारा कर डाला 

हर ओर रहे कुछ चेहरे 
अपनों को पास नहीं पाया 
हँसता तो दिखा हरपल
मगर मैं  रो नहीं पाया 

जिरह करना सीखा था   
पर जबाब दे नहीं पाया 
उन नादानी के प्रश्नों पर 
माफी मांग नहीं पाया 

यूँ चलता ही रहा है जीवन 
पर थम नहीं पाया 
रात अँधेरी लाखों हैं
पर सो नहीं पाया 


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