वनवासी

सोच कर सम्मान की छांव 
मैने आस का रुद्राक्ष रोपा
वो चीड़ के जंगलों सा 
फैलता गया इस क़दर।

सहाल कर एक बीज बोया
हर उतार चढ़ाव पर ठहराव रखा
वो एक कारवाँ का झंझावत लाया
और सब कुछ उडा कर चल दिया।

बिखरता कारवाँ सम्भलता कहॉं 
फैलता चीड़ सब कुछ मार जाता है 
मै मिश्रित वनों का वनवासी हूँ दोस्त!
एकाकी सोच और तेरे दोस्तो में अट नहीं पाया...

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण