मन में है

इन पंगतो के बीच कोई
रश्मिरथी सा सवार था
उस याद के आँगन से परे 
यह शख़्स अपना सा लगा था ........

यह नज़र जब देखतीं थी
हर खुशी तब अपनी लगी
अब वही जो इन जड़ो पे
तेज़ चलती ख़ंजर सी है .......

मैं जाया रहा कृषक सदा
उम्मीद अब भी उसपे है
हाथ बौने हो कि कंठ रुन्दन कर भले
कर्म से भागा नहीं, तु अभी भी मन मे है ।

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण