बदलते लोग

सुना है महफ़िल मे वो शख़्स 
मुझे नीचा दिखाकर ख़ुश हुआ
वो जिस पर एक ख़ामोश भरोसा था
जो सम्मानों के पहले पायदान पर था ।

हर एक आँख की नफ़रत पहचानती है मुझे
हर बार नज़र जो घुमायी है उसने मिलाते मिलाते 
वो जिसके लिये क़ुर्बान था हर भेदभाव 
और जिसके लिये कईयों से लड़ के आया था ।

‘मन’ ख़ाली सा हुआ तुझसे दूर जाते जाते 
कुछ और बस मे होता तो लुटाते जाते 
अब तो हर शख़्स पत्थर सा उछालता है 
और उस पर तु कहता है कि बदला क्या है?

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