ठिठका हूँ

मन में कुछ तो

घर कर गया है।

कुछ है जो

कभी निकलता नहीं ।

कितनी सच्चाई थी 

उन आँसुओं मे।

आज तक ये 

समझ तो नहीं पाया।

फिर भी हर बार तेरे

सम्मान मे ही ठिठका हूँ ।

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