जरूरी नहीं



ये जरूरी नहीं कि दरिया धरती पर ही बहे
कुछ पाक नदियाँ इसके गर्त में भी बहती है
मन की बातो को तु जुबां तक तु लाता नहीं
या कि कभी अरुणोदय ही न हुआ संवेदना का ...

ये जरूरी भी नहीं कि तु लिख दे या कह दे कुछ भी
मन ने जिसे पढ़ा हो  मौनमयी ही रही है भाषा वो
इच्छाओ कि औदम्ब्रा ही रहा मन देश ऐ दोस्त !
सोचता हूँ कि ये रिश्ता पावन है या है ही नहीं?

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण