चला जा रहा है

दूर कहीं आकाश मे 
वो तारा टूटता जा रहा है
विरह वेदना के सम्वत सुरों से
कोई साथ अब छूटता जा रहा है 

कोई मंज़िलों पर नज़र को गड़ाये 
मै ख़ानाबदोश घूमता जा रहा हूँ 
पथ प्रणय का जो होता तो यूँ ग़म न होता
वो ठहराव ज़िन्दगी का बहा जा रहा है 

जो सीमित ही रहा है हमेशा 
मेरे विस्तार को अन्नत करके 
वो अजनबी जो शून्य मे धकेलता रहा है
चला जा रहा है कुछ ख़्वाब देकर 

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