टीस


स्वप्न यहाँ भी है वहाँ भी होंगे 
बस यही जो फर्क है हममे 
कोई रातो में जागा है 
कोई चिरनींद सोया है 

मैं जगता हूँ यूँ रातो मैं 
मेरी ये बेबसी है दोस्त 
किताबो मै हूँ या लोगो मै 
अक्सर तुझे सोचता हूँ मैं

कई शामों को तनहा ही 
इस टीस मैं बसर किया मैंने 
चिल्लाया जो था तुझपर मैं 
पर कभी रूठा नहीं हूँ मैं 

तू कितना दूर भी होले
पर मन के तटस्थ रहा है तू 
ये दूरी भी तुझे मन के 
दरिबों   मैं बैठा देगी  ....

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