बदला तो है

जो मुस्कुराहट पहचान थी कभी 
वो जो मज़ाक़िया मिज़ाज था 
हर दौर मे अल्हड़ ही था ये जीवन
और तु जताता है कि बदला ही क्या है 

रौंदा न है कभी विश्वासों को
जकड़ा नहीं कभी मोहपाश मे 
हर माहौल मे खुल के जीवन की आदत
और तु जताता है कि बदला ही क्या है

ये सोच रही थी पहाड़ों के पास ही 
खुले मन से उड़ा हूँ हर आसमान में
वो ख़ुशबू स्नेह की फैलायी थी हरदम
और तु जताता है कि बदला ही क्या है 


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