तुझ पर

देखा है वो डूबता जहाज़ 
देखे हैं दूर रेत पर तेरे निशाँ 
वो आस के चार शब्द भी मिटते देखें
तु जो सोचता है ‘मन’ नही 
तेरी ख़ामोशी  को महसूस किया है 

देखा है नज़रों का फेर लेना 
देखा है तुझे शून्य होते 
उस हँसी को तनाव मे बदलते देखा 
जो तु मानता है सोचा नही 
हर बार एक दर्द दे गया 

माना है हर बार क़सूरवार खुद को 
पढा है उस नफ़रत को भी
देखा है तुझपे तेरे लोगों का असर 
जो सब कहते है कभी विश्वास नही 
हर बार तेरा सम्मान बढ़ सा गया ...

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