अब भी हैं

सबका अपना अपना अभिमान है 
झूठी बातों की प्रतिद्वन्द्विता  है
सुनि हुई बातों के ला़क्षन हैं 
मन साफ़, दो बार साथ बैठना कभी 
खाई अविश्वासों की भरती ज़रूर है 

सबका अपना अपना जीना भी है
ख़ामोशियों से भरी एक सोच भी है 
कानों मे बलबताते मक्खियों की घूं है 
मन साफ़, दो बार साथ बैठना कभी
स्नेह के रिश्तों का असर अभी भी है

सबका अपना अपना रास्ता भी है
काटों से भरा संघर्षों का जीवन है 
सोचने को प्राथमिकताओं की झडी है 
मन साफ़, दो बार साथ बैठना कभी
हज़ारों हँसने के बहाने अब भी हैं 





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