साथ है


सुना आकाश और मन साथ हो गए  है
ख़ामोशी की रिश्ते का नाम दिया है
उगता सूरज हो या ढलती शाम
विराम सी हो गयीं है जिंदगी

सुखद अनुभूति में तेरा अहसास
स्याह रातों में भी तेरा साथ
कल्पना के नेपथ्य में घूमते है
अपने रिश्तो के अनकहे जज्बात

तू साथ न भी दे तो क्या
मंच संचालित है अब भी
दर्शक दीर्घा ख़ाली है
पर पात्रता अभी ख़त्म नहीं हुई 

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