हर सांस में

राग में अनुराग में
या कि फिर अभिमान में 
तु साथ चलता ही लगा
हर ख़ामोश राह में

शब्द में स्वभाव में 
या कि फिर अहसास में 
तु मान रखता ही लगा
हर घडीं हर काल में 

रंग में अनुसरण में 
या कि फिर अभिताप में
तु सम्मान करता ही लगा
हर भेद में हर भाव में

पास में संताप में
या कि फिर परमार्थ में
तु ‘मन’ जुडाता ही रहा 
हर आस में हर साँस में

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