पगली


कोई चंचल नटखट लड़की
'मन' पर दस्तक देकर जाती थी
छेड़ देती थी तार दिलो के
गीत प्रेम का गाती थी

सखियों संग उसके ताने
और आँखों से उसकी बातें
पास हमारे छूकर जाना
मन हिलोर कर जाती थी

कह देती थी बिन कुछ बोले
सबको बहरा समझती थी
पगली उसकी करतूतें जो
'मन' को पागल करती थी 

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