अपनी सी लगी

ख्वाहिशें बहुत तो नहीं थी
गेसुओं का भी यकीं न था
वो हंसी की छोटी सी झलक
जब देखी अपनी सी लगी

उड़ के देखा है सरहदों के पार
घरोंदों की 'मन' को चाह न थी
उन उठती नज़रो की कसक
जब चुभी अपनी सी लगी

सहचर बनकर चलना कब था
सांसों की आहट पास नहीं थी
ठिठकते क़दमों की आवाज़
जब सुनी अपनी सी लगी

ढोल की थाप अपनी कब थी
पास बुलाती कोई तस्वीर न थी
दूर का वो जुगुनू कहा गया
वो बुझती रौशनी भी अपनी सी लगी 

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