पलायन

वो नदिया जो बह चली
फूल सब मुरझा चले
बसन्त से पतझड़ तक
हर मौसम जो गुज़र गया

बादल वो सब उड़ चले
धूप सहरा मे फैली है 
बंजर होती ज़मीं पर 
आस की फ़सल अभी बाक़ी है  

हिमनद सब पिघल गये 
पहाड जो विरान है 
पलायन की मार पर 
तेरे हर फ़ैसले का इन्तज़ार है 



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