वो बैठा रहा

वह बैठा ही रहा दिनों से 
शायद इंतज़ार में होगा 
सूखे में पपीहा की प्यास 
और उदासी में मन की बात 
अक्सर बड़बड़ाती ही है 

उदासी का सबब न पूछ
ख़ामोशी का इतबार कहाँ 
गरीब की पुरानी झोपडी 
और घोटालेबाज़ पर दौलत 
अक्सर बरसती ही है 

अपनों से नाराजगी का बोझ
परेशान यूहीं नहीं करता 
अपनो का छोड़कर जाना
और दूरियों में उनकी की याद
अक्सर रुलाती बहुत है 

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