नही दिखा

वो कभी बारिश मे 
भीगता भी न दिखा 
नही तो वो कभी 
दुपट्टा घुमाके चबाता दिखा 
क़दम थमे तो थे उसके
पर कभी रुकता हुआ भी न दिखा 

वो कभी कोई पाती
लिखता भी न मिला 
भीड़ मे भी अकेला सा रहा  
पर खोया सा भी न दिखा
रोया तो था वो कभी 
पर खुल के कुछ न जताया कभी 

वो वैसे कभी हाथ
बढ़ायें भी न मिला 
नही तो वो कभी 
पास से छूकर गुज़रा 
नज़र झुकाता तो था कभी 
पर दायरों को पार न किया कभी 

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