दिन आम नही

जिसने पिछले साल भेजी थी 
मित्रता दिवस की शुभकामनाएँ 
वो अबके खामोश था 
शायद, परख लिया होगा
यूँ आम तो हम भी न थे 

जिसने दुपट्टे को थामा था अदब से
रिमझिम बरसा था जो कभी 
वो अबके सावन सूखा ही रहा 
शायद, बरखना भूल गया होगा
यूँ तो हर बारिश मे भीगे हम भी नहीं थे 

जिसकी झुकती नज़रों मे  पायी थी
सम्मानों के समुन्दर की गहरायी
वो अबके सतह पर ही दिखा
शायद, अदब वो भूल गया होगा
यूँ तो नज़र सबसे हमने भी मिलायी नही थी


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