वो शाम ढली नही

वो सूखी नदियाँ 
बहती तो नही देखी
आस के कुछ बीज
उगते जरुर देखे 

पछवा चली कभी 
कभी पूरवैयां  चली 
सुखाती फ़सल देखी 
जगाती ख़ुशबू बहीं 

न जीतना चाहा
न मन हार पाया
कोशिशों के आसमां की 
शाम कभी ढली नही 


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