वो झिझक

झुकती नज़रें कोने से 
अब बुलाती नहीं ।
उठती हथेली दुवाओं की 
इबारत लिखती नहीं ।
अहसास दबे रहते हैं मन में, 
यादों की कुछ कहानियाँ 
कभी पूरी होती नही ।

छूवन सुने अहसासों की 
अब महसूस होती नही ।
नज़दीकियाँ वो अपनों से
ख़ुशबूओं को ढकती नही ।
ख़्वाब दबे रहते हैं मन में ,
स्नेह की कुछ पक्तियाँ  
कभी पिरोयी नही जाती ।

मुड़कर देखने का मन होता है
पास बुलाती वो नज़र नही ।
चलता है बहुत कुछ आसपास 
खामोश पदचापों की आवाज़ नही ।
हँसी रहती है अब भी होंठों पर,
पर तेरे सामने वाली वो झिझक 
अब कहीं और के लिए नही आती ।

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