नींव की ज़मीं

बुलन्दियाँ मेरी 
दिखी सबको 
वो अडा रहा मेरी
नींव की ज़मीं पर 
ना हिला न डगा
न कदम बहके 
वो जमा रहा मेरी
जड़ों के बजूद पर

ओज था जो बचा
अहसास सबको रहा
वो ही कारीगर रहा 
मेरे रास्तों की देहरी  पर 

न कहा न सुना 
न जताया कभी 
वो साथ मे खडा रहा 
बढती पड़ती हर बेल पर 

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