ढूढ़ती नजरें

कहीं किसी रास्ते पर
पथरा जाती हैं नजरें
नदियों के उफान में
बहती लगी हैं नजरें
कहीं किसी देहरी पर
गढ़ जाती हैं नजरें
ठहराव मिला वहाँ
जहाँ कभी मिली थी नजरें

कभी ऊंचे पहाड़ो पर
टिक सी गयी नजरें
कभी गहरी घाटी में
डरा सी गयी नजरें
घुप रातों के अंधेरों में
अहसास से चला गयीं नजरें
जब सब खो सा गया
तो कभी ढूढ़ती सी लगी नजरें

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