बुनियाद

जो खामोश रूठा  ही रहा हर वक्त
उसके इशारों को समझना भी मुश्किल
डूबती नाव और पदचाप छोड़ते निशान
आखिर समुन्दर में गायब हो ही जाते हैं

जो सहमता ठिठकता ही लगा हर वक्त
उसके उठे कदमो को समझना मुश्किल
झुकती नजरें और गुमशुम रहे अहसास
सवालों की कोई पहेली दे ही जाते हैं

जो कुछ कह ही न पाया किसी वक्त
उसके हिलते अधरों को पढ़ना मुश्किल
खामोश मन और उचटता सा विश्वास
आशाओं की बुनियाद कमजोर कर ही जाती हैं 

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