कहाँ है

न तु पूछेगा न बतायेगा
जानता भी हूँ मानता भी हूँ 
पत्थरों में आवाज़ नही होती 
पूजा फिर भी उन्हें ही जाता है 

न तु देखेगा न दिखायेगा
हताश भी हूँ निराश भी हूँ 
हर नीड़ में जीवन नही होता 
आस फिर भी उन्हीं मे ढूँढीं जाती है 

तु न आयेगा न बुलायेगा 
समझता भी हूँ समझाता भी हूँ 
स्वप्नों मे सदैव  सच्चाई नही होती
फिर भी उन्हें देखने से डरना क्या  

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