मौन था

कभी वो चला गया 
कभी मै रोक न पाया
वक़्त था कि कभी ठहर न पाया  

दो शब्द उसके न निकले 
कभी मैं ख़ामोशी मे  रहा 
अहसास था कि कभी मरा न पाया

कभी वो रुठ गया 
कभी मैं मना न पाया
विश्वास था कि कभी टूट न पाया 

कभी वो चुप रहा 
कभी मैं कह नही पाया 
नज़दीकियाँ थी कि कभी दूर जा न पाया

कभी वो बह न पाया
कभी मै किनारे जा न पाया 
दरिया था वो कि कभी थम न पाया 

कभी वो अघूरा रहा 
कभी में पूरा कर न पाया
मौन था वो कि कभी गुनगुना न पाया 

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